‘उलूक’ लगा रहेगा आदतन बकवास करने यहाँ गोदी पर बैठे उधर सारे यार लिखेंगे
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by सुशील कुमार जोशी
3d ago
  माहौल पर नहीं लिखेंगे कुछ भी कुछ इधर की लिखेंगे कुछ उधर की लिखेंगे वो कुछ अपनी लिखेंगे हम कुछ अपनी लिखेंगे लिखेंगे और रोज कुछ लिखेंगे धूप बहुत तेज है हो लू से मरे आदमी मरे हम पेड़ पर लिखेंगे उसकी छाँव पर लिखेंगे आंधी से उड़ गयी हो छतें गरीबों की रहने दें हम ठंडी हवा लिखेंगे और गाँव लिखेंगे कोई झूठ बोले बोलता रहे हम सच पर लिखेंगे सच की वकालत पर लिखेंगे हम पड़ताल  लिखेंगे मर रहे हैं लोग बीमारियों से मरें और मरते रहें हम लिखे में अपने सारे हस्पताल लिखेंगे तीन बंदरों की नयी बात लिखेंगे गांधी और नेहरू को पडी लात की सौगात लिखेंगे तीन बंदरों को    ..read more
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ईसा मसीह भी है की खबर पता नहीं कहाँ है नहीं आती है
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by सुशील कुमार जोशी
1w ago
बहुत ही छोटी सी बात है समझ में नहीं आती है प्राथमिकताएं हैं लेखन में हैं सब की नजर आती हैं जो कुछ भी है कुछ अजीब है बस तेरे ही आस पास ही है बाकी सब के आस पास बस जन्नत है खबर आती है सब की खुशी में अपनी खुशी है होनी ही चाहिए सारे खुशी से लिखते हैं खुशी लिखे में है नजर आती है खुदा सब की खैर करे भगवान भी देखें सब ठीक हो ईसा मसीह भी है की खबर पता नहीं कहाँ है नहीं आती है ‘उलूक’ सब के दिमाग हैं सही हैं अपनी ही जगह पर हैं बस तेरे लिखे में ही है कुछ सीलन सी नजर आती है चित्र साभार: https://www.biography.com ..read more
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खा गालियाँ गिन नाले बनते बड़े छोटी होती नालियों से क्या उलझना
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by सुशील कुमार जोशी
1w ago
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शाबाश है ‘उलूक’ खबरची की खबर पर वाह कह के मगर जरूर आता है
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by सुशील कुमार जोशी
2w ago
  किससे कहें क्या कहें यहाँ तो कुछ भी समझ में ही नहीं आता है ढूंढना शुरू करते हैं जहां कोई भी अपना जैसा नजर नहीं आता है सोच में तेरी ही कुछ खोट है ऐसा कुछ लगता है सबका तुझे टेढ़ा देखना बताता है सामने वाला हर एक सोचता है अपनी सोच तुझे छोड़ हर कोई तालियाँ बजाता है   ..read more
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इस बार करनी है आत्महत्या या रुक लें पांच और साल या देखना है अभी भी कोई पागल पागल खेलता हुआ पागल हो गया होगा
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by सुशील कुमार जोशी
3w ago
  नाकारा होगा तू खुद तुझे पता नहीं होगा नक्कारखाना कहता है जिसे तू वहां तूती बजाना तेरे लिए ही आसान होगा अब तक तो निगल लेनी चाहिये थी तुझे भी गले में फंसी हड्डीयां तुझ सा बेवकूफ यहाँ नहीं होगा तो कहां होगा सोच ले सपने में भी हर कोई जहां किसी बीन की आवाज के बिना भी कदम ताल कर रहा होगा शर्म तुझे आनी चाहिए वहां किसलिए अपने आसपास के लेनदेन को रोज खुली आँखों से तू क्यों देखता होगा पढ़ने वाले तेरे लिखे को पढ़े लिखे ही होते होंगे   उन्हें भी सारा सब कुछ सही समय पर मालूम होता ही होगा रेंकता रह गधा बन कर दिखाने के लिए गधे चारों और के अपने गधा भी इस सब के लिए कुछ तो कर रहा होगा और  ..read more
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इंतज़ार है है मर्यादा पुरुषोत्तम दिखेगा राम नाम सत्य ज़ुबानी ज़ुबानी
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by सुशील कुमार जोशी
3w ago
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ईश्वर है है ईश्वर मंदिर मूरत छोड़ कर आज वो एक नश्वर हो गया है
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by सुशील कुमार जोशी
1M ago
सारी किताबें खुली हुई हैं स्वयं बताएं खुद अपना पन्ने को पन्ने शक्कर देख रही कहीं दूर से लड़ते सूखे सारे गन्नों से गन्ने सच है सारा पसर गया है झूठ बेचारा यतीम हो गया है बता गया है बगल गली का एक लंबा लंबा सा नन्हे चश्मा लाठी धोती पीटे सर अपना ही एक चलन हो गया है बुड्ढा सैंतालिस से पहले का एक आज बदचलन हो गया है बन्दर सारे ही सब खोल कर बैठे हैं अपना सारा ही सब कुछ आँख नहीं है कान नहीं है मुंह पर भी अब कपड़ा भींचे सारे बन्ने आँखे दो दो ही सबकी आँखें कौआ ना अब वो कबूतर हो गया है मत लिख मत कह अपनी कुछ उससे पूछ जो तर बतर हो गया है ईश्वर है है ईश्वर मंदिर मूरत छोड़ कर आज वो एक नश्वर हो गया है नश्वर ..read more
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कभी भेड़ों में शामिल हो कर के देख कैसे करता है कुत्ता रखवाली बन कर नबी
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by सुशील कुमार जोशी
3M ago
शीशे के घर में बैठ कर आसान है बयां करना उस पार का धुंआ खुद में लगी आग कहां नजर आती है आईने के सामने भी तभी बेफ़िक्र लिखता है सारे शहर के घोड़ों के खुरों के निशां लाजवाब अपनी फटी आंते और खून से सनी सोच खोदनी भी क्यों है कभी हर जर्रा सुकूं है महसूस करने की जरूरत है लिखा है किताब में भी सब कुछ ला कर बिखेर दे सड़क में गली के उठा कर हिजाब सभी पलकें ही बंद नहीं होती हैं कभी पर्दा उठा रहता हैं हमेशा आँखों से रात के अँधेरे में से अँधेरा भी छान लेता है क़यामत है आज का कवि  ..read more
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कितना बहकेगा तू खुद उल्लू थोड़ा कभी बहकाना सीख
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by सुशील कुमार जोशी
3M ago
  मयकशी ही जरूरी है किस ने कह दिया समय के साथ भी कभी कुछ बहकना सीख कदम दिल दिमाग और जुबां लडखडाती हैं कई बिना पिए  थोड़ा कुछ कभी महकना सीख दिल का चोर आदत उठाईगीर की जैसी  ..read more
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निमंत्रण देते हैं सबके कांव कांव कर देने के अभिलाषी
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by सुशील कुमार जोशी
4M ago
  सारे काले कौवे सारे कहना ठीक नहीं बहुत सारे कहें ज्यादा अच्छा है बहुत सारे भी कहें  फिर भी प्रश्न उठता है  कितने सारे एक झुण्ड ढेर सारे कौवों का नीले आसमान में  कांव कांव से गुंजायमान करता  हर दिशा को क्या दिशाहीन कहा जाएगा  नहीं  झुण्ड का कौआ नाराज नहीं हो जाएगा हर किसी काले के लिए संगीतमय है  ये शोर नहीं है  ये तो समझा करो यही भोर है एक चमगादड़ उल्टा लटका हुआ  कोने में अपने खंडहर के किसी  सोच रहा पता नहीं क्यों  बस मोर है मोर कहां झुण्ड में रहते हैं  मस्त रहते हैं नाचते गाते पंख फैलाते  ..read more
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