
Sufinama Blog
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2M ago
हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल साहिब-ए-दिल थे, आप साहब-ए-कश्फ़-ओ- करामात,सनद-ए-औलिया और हुज्जत-ए-मशाएख़-ए-वक़्त,मुशाहिदात-ओ- मक़ालात-ए-‘आली में यकता,तमाम मशाएख़-ए-वक़्त के कमालात-ए-सुवरी-ओ- मा’नवी के मक़र्र थे। आप हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन मसऊ’द गंज शकर के हक़ीक़ी भाई, मुरीद और ख़लीफ़ा थे।
ख़ानदानी हालात:
आप फ़र्रूख़ शाह के ख़ानदान से थे, फ़र्रूख़ शाह काबुल के बादशाह थे, जब गज़नी ख़ानदान का ऊ’रुज हुआ, फ़र्रूख़ शाह के हाथ से हुकूमत निकल गई, काबुल पर ग़ज़नी ख़ानदान का क़ब्ज़ा हुआ,इस इंक़िलाब के बा’द भी फ़र्रूख़ शाह ने काबुल नहीं छोड़ा, उनकी औलाद भी काबुल में रही, चंगेज़- ख़ाँ ने ग़ज़नी को तबाह-ओ-बर्बाद किया, हज़रत नजीब ..read more
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6M ago
Titles: Murshid-e-Yagana, Faiz Bakhsh-e-Zamana, Huzur Saiyedna Faiz ur Rasool (رحمة الله عليه).
Birth: Hazrat was born in 1317 AH ( 1900 AD ).
Parents:
His father was HazratSaiyed Faiyazuddin (R.A) and mother SaiyedaHifazatbibi (R.A). Hazrat was born of this couple, he grew up under his well qualified parents, they were fervent piety, dedicated to higher moral and spiritual values. They must have developed an other-worldly outlook and it must have run into the veins of their son.
As it is quoted in Fawa’id ul fw’ad ” a son i ..read more
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8M ago
उर्दू की तर्वीज-ओ-इशा’अत और फ़रोग़-ओ-इर्तिक़ा में सूफ़िया-ए-किराम ने जो ख़िदमात पेश कीं वो किसी साहिब-ए-नज़र से पोशीदा नहीं। इस ज़बान को ’अवाम के दरमियान मक़बूल बनाने और इसके अदबी सरमाए को वुस्’अत ’अता करने में उन ख़ुदा-रसीदा बुज़ुर्गों ने इब्तिदा ही से ग़ैर-मा’मूली कारनामे अंजाम दिए हैं।
ये उन्हीं का फ़ैज़ान है कि ज़माना-ए-क़दीम ही से उर्दू का रिश्ता ’अवाम से उस्तवार रहा है। उन्हों ने तब्लीग़-ए-दीन और पंद-ओ-नसाएह के लिए जिन मक़ामी ज़बानों का इंतिख़ाब किया उन में उर्दू को इम्तियाज़ी हैसियत हासिल है। यही वजह है कि तसव्वुफ़-ओ-’इर्फ़ानियात से मुत’अल्लिक़ जो कुतुब-ओ-रसाइल दस्तियाब हैं उन में हिंदु ..read more
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9M ago
गुजरात में सैकड़ों उ’लमा और अत्क़िया पैदा हुए और चल बसे लेकिन गुजरात के आसमान पर दो ऐसे आफ़ताब-ओ-माहताब चमके जिनके ’इल्मी कारनामों की शु’आऐं अभी तक परतव-फ़िगन हैं। उन में से एक मुहद्दिस-ए-बे-बदल ’अल्लामा शैख़ मोहम्मद ताहिर पटनी (गुजराती) हैं और दूसरी मुक़द्दस हस्ती हज़रत शाह वजीहुद्दीन ’अलवी गुजराती की है। इनसे पहले नेहरवाला पट्टन (अनहल-वाड़ा) और अहमदाबाद में मुत’अद्दिद मदारिस मौजूद थे और मुख़्तलिफ़ ’इल्मी मरकज़ों से लोग फ़ैज़याब होते थे लेकिन जबसे इन दोनों बुज़ुर्गों का वुजूद ज़ुहूर-पज़ीर हुआ, ’इल्मी दुनिया में नया इन्क़िलाब पैदा हुआ और तिश्नगान-ए-’इल्म की जिस कसरत-ए-ता’दाद ने उनसे सैराबी हास ..read more
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10M ago
शैख़ सा’दी के मुआ’सिर शम्स बिन क़ैस राज़ी की तसनीफ़ अल-मो’जम फ़ी-मआ’इर-ए-अशआ’रिल अ’जम, मिर्ज़ा मुहम्मद बिन अ’ब्दुल वहाब क़ज़वीनी के तर्तीब-ओ-तहशिया से शाए’ हुई है, इस पर मिर्ज़ा साहब का एक बसीत आ’लिमाना मुक़द्दमा भी सब्त है।
इस मुक़द्दमा में मिर्ज़ा साहब मौसूफ़ ने शैख़ सा’दी के तख़ल्लुस पर इस तक़रीब से नज़र डाली है कि इस मुआ’सिर किताब में सा’दी के शे’र क्यों नहीं हैं, और इस से ये नतीजा पैदा किया है कि शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस अबू-बक्र बिन सा’द बिन ज़ंगी बादशाह-ए-फ़ारस के बेटे शाहज़ादा सा’द बिन अबू-बक्र के नाम से माख़ूज़ है,  ..read more
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10M ago
लखनऊ के मुतअ’ल्लिक़ बृज नारायण चकबस्त ने बहुत पहले कहा था :
ज़बान-ए-हाल से ये लखनऊ की ख़ाक कहती है
मिटाया गर्दिश-ए-अफ़्लाक ने जाह-ओ-हशम मेरा
दिल्ली के बा’द हिन्दुस्तान का उजड़ने वाला ये दूसरा शहर है। ब-क़ौल मिर्ज़ा हादी रुसवा:
दिल्ली छुटी थी पहले अब लखनऊ भी छोड़ें
दो शहर थे ये अपने दोनों तबाह निकले
तबाही और बर्बादी के बावजूद भी ये हिन्दुस्तान का मक़बूल-तरीन शहर माना जाता है जहाँ आज भी उसकी ख़ूबसूरती मुसाफ़िरों को ठहरने पर मजबूर करती है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ कि 8 नवंबर 2021 ’ईस्वी सोमवार को दिल्ली से लखनऊ के लिए रवाना हुआ और सुब्ह 6  ..read more
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10M ago
ईद का शाब्दिक अर्थ सूफ़ी किताबों में कुछ यूँ मिलता है- (मुसलमानों के त्यौहार का दिन; हर्ष; ख़ुशी) ׃सूफ़ी के हृदय पर जो तजल्लियाँ वारिद होती हैं, वह उसके लिए ‘ईद’ हैं.
सूफ़ी-संतों के प्रतीकों में ईद का एक महत्वपूर्ण स्थान है. ईद का दिन पूरे महीने रोज़े रखने और ईश्वर पर भरोसा करने के बाद की ख़ुशी का है. सूफ़ी इस भरोसे को तवक्कुल कहते हैं. इसके दो प्रकार हैः- पहला तवक्कुल, अपनी ओर से कोई साधन न जुटा कर, केवल ज़ात (परमसत्ता) ही पर निर्भर रहना, वे अपने पास एक पैसा तक रखना भी अवैध समझते हैं. दूसरा तवक्कुल, अपनी ओर से साधन तो जुटाए जाएँ, परंतु ईश्वर पर भी भरोसा हो.
सूफ़ी संतों ने इस भरोसे को प्रार्थन ..read more
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10M ago
The Land of Hindustan is an abode of Sufism and Dargahs. In India, faith is the strongest bond that cements the social fabric amongst people and this is the reason why Sufism as a spiritual path in the Indian sub-continent. Sufism in India shows the path not only to enlighten Muslims, but is also followed by people of any faith interested in spiritual awakening. There are numerous Sufi saints born in India and their contribution to a syncretic culture is immeasurable. Of these, the name of Hazrat Shaikh Ahmad Farooqi Al-Sirhindi, popularly known as Mujaddid Alf Sani (Revive ..read more
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10M ago
हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी
शैख़-उल-मशाइख़, बादशाह-ए-’आलम-ए-हक़ीक़त , कान-ए-मोहब्बत-ओ-वफ़ा हज़रत ख़्वाजा नसीरुल-मिल्लत वद्दीन महमूद अवधी रहमतुल्लाह अ’लैह।
तकमिला-ए-सियर-उल-औलिया में है कि ’इल्म-ओ-’अक़्ल-ओ-’इश्क़ में आपका ख़ास मक़ाम था। मकारिम-ए-अख़्लाक़ में आपका काई सानी न था।
जानशीन:–
आप हज़रत महबूब-ए-इलाही के ख़लीफ़ा-ओ-जानशीन थे।
वालिद-ए-बुज़ुर्गवार:–
आपके वालिद-ए-माजिद का नाम सय्यद यहया यूसुफ़ था।
आपके जद्द-ए-मोहतरम का हिंदुस्तान वारिद होनाः-
सातवीं सदी हिज्री में आपके अज्दाद-ए-किराम इशा’अत-ए-दीन-ओ-तब्लीग़, रुश्द-ओ-हिदायत की ग़र्ज़ से यज़्द (ईरान) से निशापुर के रास्ते हिंदुस्तान ..read more
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10M ago
’इल्म-ए-तसव्वुफ़ जिसकी निस्बत कहा जाता है, बरा-ए-शे’र गुफ़्तन ख़ूब अस्त’
–मौलाना अलताफ़ हुसैन हाली “यादगार-ए-ग़ालिब”
उर्दू शा’इरी की इब्तिदा में जिन शो’रा का कलाम तहक़ीक़ में, तारीख़ी तज़्किरों में मिलता है वो या तो सूफ़ी थे या सूफ़ियों से फ़ैज़-याब अश्ख़ास। सूफ़िया की इब्तिदाई ता’लीमात में क्यूँकि इ’श्क़ को ज़रिआ’-ए-नजात और तअ’ल्लुक़-इलल्लाह का ज़रिआ’ समझा जाता है सूफ़िया ने शा’इरी को ब-कसरत अपनाया और अवाइल-ए-ज़माना से सहाबा-ए-किराम, ताबि’ईन, तबा’-ताबे’इन, अइम्मा, फ़ुक़हा नें ’अरबी में शे’र-गोई की। बा’द के ज़माने में फ़ारसी शो’रा जो अक्सर सूफ़िया ही थे मौलाना जलालुद्दीन रूमी, शम्स तबरेज़ी, हा ..read more