कोर्ट में जिरह कैसे करें
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by Unknown
3M ago
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Protection Granted to Females (Constitution, IPC, CrPC)
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by Unknown
5M ago
Constitutional Provisions The Constitution of India not only protects women from exploitation and discrimination but also empowers the State to adopt measures of positive discrimination in favour of women for neutralizing the cumulative socio economic, education and political disadvantages faced by them.  Following are constitutional privileges which are guaranteed to women in India for their empowerment. Fundamental Rights Discrimination: Article 14: Equality before law Article 15: The State not to discriminate against any citizen on grounds only of religion, ra ..read more
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अगर एफआईआर किसी दूसरे राज्य में भी दर्ज हुई है तो भी एचसी, सत्र न्यायालय सीमित अग्रिम जमानत दे सकते हैं : सुप्रीम कोर्ट
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by Unknown
5M ago
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब एफआईआर किसी विशेष राज्य के क्षेत्र में नहीं बल्कि एक अलग राज्य में दर्ज की गई हो तो सत्र न्यायालय या हाईकोर्ट के पास गिरफ्तारी से पहले जमानत देने की शक्ति होगी। इसमें कहा गया, ''नागरिकों के जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की संवैधानिक अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय के क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार में एचसी/सत्र को न्याय के हित में सीआरपीसी की धारा 438 ..read more
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[ट्रांजिट अग्रिम जमानत] उच्च न्यायालय, सत्र न्यायालय गिरफ्तारी से पहले जमानत दे सकते हैं, भले ही एफआईआर अलग-अलग राज्य में दर्ज हो: सुप्रीम कोर्ट
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by Unknown
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सुप्रीम कोर्ट: सत्र न्यायाधीश, बैंगलोर द्वारा पारित फैसले के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका में, जिसमें अदालत ने आरोपी/पति द्वारा अतिरिक्त क्षेत्रीय जमानत आवेदन की अनुमति दी है, बीवी नागरत्ना और उज्ज्वल भुयान, जेजे की खंडपीठ ने कहा। यह माना गया है कि उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय किसी आरोपी को अग्रिम जमानत दे सकते हैं, भले ही प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दूसरे राज्य में दर्ज हो। इस मामले में पत्नी ने राजस्थान में एफआईआर दर्ज कराई थी, लेकिन बेंगलुरु कोर्ट ने पति को अग्रिम जमानत दे दी थी. समस्याएँ:  क्या आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 ('सीआरपीसी') की धारा 438 ..read more
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Murder (Section 302) Under IPC
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by Unknown
1y ago
Murder (Section 302) Under IPC Description of section 302 According to section 302 of the Indian penal code, Whoever kills any person, shall be punished with death or with imprisonment for life, as well as with fine. Applicable offense To kill Punishment: Death penalty or life imprisonment + fine It is a non-bailable, cognizable offense and triable by the Court of Session. This offense is not compoundable. We often get to hear and read that in the case of murder, the court has found the perpetrator guilty of murder under section 302 of the IPC i.e. Indian Penal Code. In such a case, the cour ..read more
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What is the right of son or daughter on their fathers property
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by Unknown
1y ago
कोई भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में अनेक संपत्तियां अर्जित करता है। ऐसी संपत्ति चल और अचल दोनों प्रकार की होतीं हैं। किसी व्यक्ति के पास अचल संपत्ति में बैंक खाता, एफडी, शेयर्स, वाहन, डिबेंचर, नक़दी, गोल्ड सिल्वर इत्यादि अनेक चीज़ें होती हैं। अचल संपत्ति में व्यक्ति के पास घर, प्लॉट, फ्लैट, कृषिभूमि इत्यादि होतें हैं। यह सभी संपत्ति व्यक्ति भिन्न भिन्न प्रकार से अर्जित करता है। मुख्य रूप से यह संपत्तियां व्यक्ति को तीन प्रकार से प्राप्त होतीं हैं। स्वयं अर्जित संपत्ति ऐसी संपत्ति व्यक्ति स्वयं अर्जित करता है। अब भले इस संपत्ति को अपने कमाए रुपए से ख़रीदा हो या फिर उस व्यक्ति को किसी व्यापारिक विभ ..read more
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When does the police present the termination report in a case?
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by Unknown
1y ago
 किसी प्रकरण में पुलिस कब पेश करती है खात्मा रिपोर्ट? -------------------------------------------------- हम देखते हैं कि कई मामलों में पुलिस खात्मा रिपोर्ट पेश करती है। आखिर क्या है यह खात्मा रिपोर्ट और वे कौन सी परिस्थितियां हैं, जब पुलिस खात्मा रिपोर्ट पेश करती है। दंड प्रकिया सहिंता की धारा 154 के अंतर्गत पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध के मामले प्रथम इत्तिला रिपोर्ट (FIR ..read more
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Cognizance of offences by Magistrate
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1y ago
मजिस्ट्रेट अपराधों का संज्ञान किस कानून के तहत लेते हैं किसी भी अपराध का संज्ञान सर्वप्रथम मजिस्ट्रेट द्वारा लिया जाता है, हालांकि कुछ विशेष अधिनियमों के अंतर्गत आने वाले अपराधों का संज्ञान सीधे सत्र न्यायाधीश द्वारा ले लिया जाता है लेकिन साधारण तौर पर संज्ञान मजिस्ट्रेट द्वारा ही लिया जाता है। इस आलेख में मजिस्ट्रेट द्वारा लिए जाने वाले संज्ञान के संदर्भ में चर्चा की जा रही है। संज्ञान विचारण का प्रारम्भिक बिन्दु है। अपराध का संज्ञान लेने के साथ ही विचारण प्रारम्भ हो जाता है। शब्द ‘संज्ञान’ की कहीं परिभाषा नहीं दी गई है। सामान्यतः पत्रावली (आरोप पत्र) का अवलोकन करने के पश्चात् उसे दर्ज कि ..read more
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RIGHT TO INFORMATION - PART THREE
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by Unknown
1y ago
  सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा- 3 अत्यंत महत्वपूर्ण धारा है। यह धारा सूचना के अधिकार का उल्लेख करती है। यह वही धारा है तथा वही अधिकार है जिसके लिए भारत में वर्षों तक संघर्ष किया गया और इस अधिकार हेतु हुई इस अधिनियम को गढ़ा गया है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 3 ..read more
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RIGHT TO INFORMATION ACT - PART TWO
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by Unknown
1y ago
  सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 2 अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएं सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा- 2 में इस अधिनियम से संबंधित महत्वपूर्ण शब्दों की परिभाषा प्रस्तुत की गई है। इन परिभाषाओं के माध्यम से इस अधिनियम के प्रावधानों को समझा जाता है और उनका ठीक निर्वचन किया जाता है। जैसा कि किसी भी अधिनियम के प्रारंभ में उसके विस्तार और उसके नाम के बाद उस अधिनियम से संबंधित विशेष शब्दों की परिभाषा ठीक अगली धारा में प्रस्तुत की जाती है इसी प्रकार इस अधिनियम में भी किया गया है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 2 ..read more
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