आज का सुभाषित / Today's Subhashita.
Sanskrit Subhashitas
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5y ago
मणिर्लुन्ठति  पादाग्रे  काचः  शिरसि  धार्यते  | क्रयविक्रय  वेलायां  काचः  काचो  मणिर्मणिः ||                                   चाणक्य नीति (१५/१७) भावार्थ -   यदि राह में चलते हुए किसी व्यक्ति को एक मूल्यवान मणि दिखाई दे और वह उसे साधारण कांच का टुकडा समझ  कर अपने पैर के अग्र भाग से ठोकर मार कर आगे बढ जाये  और बाद  में एक साधारण कांच के टुकडे को मणि समझ कर अपने सिर पर धारण कर ले, परन्तु भविष्य में उसको क्रय-विक्रय करते समय यह स्पष्ट हो जायेगा कि  कौन कांच का टुकडा था और कौन मणि थी | (प्रस्तुत सुभाषित का तात्पर्य यह  है कि गुणवान और पारखी व्यक्ति ही किसी वस्तु का सही मूल्यांकन कर सकते हैं और ..read more
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